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कृषक समाज किसे कहते हैं? कृषक समाज की कुछ प्रमुख विशेषताएं (krishak samaj kise kahte hain? krishak samaj ki kuchh pramukh visestayen)

आज के इस पोस्ट में समाज social से जुड़ी हुई एक और प्रश्न का उत्तर जो कि कृषक समाज (farming socity)किसे कहते हैं? तथा कृषक समाज की परिभाषा और विशेषताओं के बारे में यहां पर उल्लेख किया गया है जिसकी पूरी जानकारी यहां पर आपको उपलब्ध कराई गई है और कृषक समाज से जुड़े हुए अनेक पहलुओं को समझने के लिए हमारे इस पोस्ट को पूरा पढ़ें यह एक समाज से जुड़ा हुआ प्रश्न है क्योंकि कृषक का अर्थ होता है किसान और समाज का अर्थ होता है समाज अर्थात किसानों के समाज को ही कृषक समाज कहा जाता है? इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति जो अपनी आजीविका चलाने के लिए कृषि पर या भूमि पर आधारित होते हैं और भूमि को जोत कर उसमें अनाज उगाते हैं तथा अपना भरण-पोषण करते हैं उन लोगों को कृषक समाज के अंतर्गत जाना जाता है कृषक समाज के अंतर्गत उन सभी व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जो कि कृषि से संबंधित होते हैं और अपनी आजीविका तथा अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए कृषि पर निर्भर होते हैं वह किसी अन्य नौकरी चाकरी या व्यापार का सहारा नहीं लेते हैं वह सिर्फ अनाज उड़ा कर अपना भरण-पोषण करते हैं तथा उसको बेचकर अपने आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं उन लोगों को कृषक समाज कहा जाता है कृषक समाज भारत में काफी ज्यादा प्रभावी रहा है और प्राचीन काल से ही भारत कृषि प्रधान देश रहा है इसलिए कृषक समाज भारत में अधिकतर मात्रा में पाया जाता है इनका जीवन स्तर काफी निम्न होता है क्योंकि कृषि के द्वारा उन्हें पर्याप्त धन नहीं मिल पाता है जिसके द्वारा वह अपने परिवार तथा बच्चों का जीवन स्तर सुधार सकें

कृषक समाज का अर्थ (meaning of farming socity)

कृषक समाज दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें पहला शब्द है कृषक जिसका अर्थ होता है किसान और समाज का अर्थ होता है सभी लोगों के संबंध में रहने वाला व्यक्ति इस प्रकार से किसानों के समूह को या किसानों के जुड़े हुए संबंध को ही कृषक समाज कहा जाता है यह व्यक्ति अधिकतर ग्रामीण इलाके में निवास करते हैं और खेती करके अपना जीवन यापन करते हैं इसका एक रूप ग्रामीण समाज के रूप में दिखाई देता है जो कि गांव में लोग निवास करते हैं और एक साथ सभी लोग भूमि को जोतते हैं तथा उसमें अनाज उड़ा कर अपने बच्चों का भरण पोषण करते हैं इस प्रकार के समाज को कृषक समाज कहा जाता है इस समाज में रहने वाले लोग काफी अशिक्षित होते हैं तथा सीधे-साधे स्वभाव के होते हैं इनका मुख्य पेशा खेती करना होता है इसके अलावा वे अपना जीवन यापन करने के लिए कोई भी व्यापार अथवा नौकरी का सहारा नहीं लेते हैं कृषक समाज या ग्रामीण समाज रूढ़िवादी प्रवृत्ति के होते हैं जो कि अपने पूर्वजों तथा प्राचीन रीति-रिवाजों को काफी ज्यादा मानते हैं और उन पर विश्वास करते हैं

कृषक समाज की परिभाषा (definition of farming socity)

व्यक्तियों का वह समाज जो अपना जीवन निर्वाह करने के लिए कृषि पर निर्भर होता है तथा अपनी भूमि के टुकड़े को जोड़कर उसमें अनाज उगाता है तथा अपना जीवन यापन करता है ऐसे समाज को कृषक समाज या किसान समाज का नाम दिया जाता है तमाम लोग इसे ग्रामीण समाज के नाम से भी जानते हैं क्योंकि यह समाज अधिकतर ग्रामीण इलाकों में ही पाया जाता है कृषक समाज के अंतर्गत लघु कृषक तथा लघु उत्पादक वाले कृषकों को ही सम्मिलित किया जाता है जो कि अपना जीवन यापन करने के लिए कृषि का सहारा लेते हैं और अपना जीवन यापन खेती में प्राप्त अनाज के द्वारा संचालित करते हैं

कृषक समाज की विशेषताएं (Features of farming socity)

कृषक समाज भारत में काफी ज्यादा प्रभावी समाज है अतः कृषक समाज की कुछ प्रमुख विशेषताएं पाई जाती हैं जो निम्नलिखित हैं

1-कृषि पर निर्भरता (krishi per nirbharta)

कृषक समाज से जुड़े हुए लोग पूर्णतया किसी पर ही निर्भर होते हैं और कृषि के द्वारा प्राप्त अनाज को खाते हैं तथा अपने बच्चों का भरण पोषण करते हैं इसके अलावा जो भी अनाज बसता है वह बेच कर अपना अभीष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं यह कृषक समाज की एक मुख्य विशेषता है कि वह कृषि पर पूर्णतया रूप से निर्भर होते हैं वह किसी के अलावा कोई भी व्यापार अथवा बिजनेस नहीं करते हैं इस प्रकार से आप पूरी तरह से देख सकते हैं कि कृषक समाज पूर्णतया कृषि पर ही निर्भर होता है

2-निम्न जीवन स्तर (low catagry life)

कृषक समाज व ग्रामीण समाज में निवास करने वाले लोग का जीवन स्तर काफी निम्न होता है क्योंकि इनके पास इतना ज्यादा पर्याप्त धन एकत्र नहीं हो पाता है जिसके द्वारा वह अपना जीवन स्तर को ऊंचा उठा सके ऐसी स्थिति में वह अपने किसी के द्वारा प्राप्त अनाज को खाते हैं तथा उसे बेचकर अपने कपड़े जूते चप्पल तथा अभीष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं इसके बावजूद उनके पास कोई पैसे नहीं बच पाते हैं जिसके द्वारा वह अपना जीवन स्तर सुधार सकें इस प्रकार से इस प्रकार से ग्रामीण समाज तथा कृषक समाज में निवास करने वाले लोग काफी गरीब होते हैं जिसके कारण उनका जीवन स्तर निम्न होता है

3-परंपरागत कृषि (paramparagat krishi)

कृषक समाज के अंतर्गत निवास करने वाले लोग अधिकतर परंपरागत तरीके से ही कृषि करते हैं जो कि उनके पूर्वजों के द्वारा किया जाता था ठीक उसी प्रकार से बैलों के द्वारा जुताई करते हैं और घर के बीज को होते हैं तथा बैलोवाल गायों के द्वारा प्राप्त खाद को अपने खेत में डालते हैं जिसके कारण परंपरागत कृषि होती है और ऐसी स्थिति में पैदावार भी कम होती है कृषक समाज में परंपरागत कृषि मुख्य विशेषता पाई जाती है

4-सहयोग की भावना (sahyog ki bhawna)

कृषक समाज के अंतर्गत निवास करने वाले लोगों में सहयोग की भावना पाई जाती है और एक दूसरे से प्रेम की भावना भी विद्यमान होती है उदाहरण के लिए आप लोग मान सकते हैं कि यदि आप इस शहर में एक दिन भोजन नहीं पाते हैं और अकेले पहुंच जाते हैं तो आपको कोई भी पूछने वाला नहीं है कि आपने भोजन किया या नहीं किया या आपको कोई भी भोजन देने के लिए तैयार नहीं होता है वहीं पर ग्रामीण समाज में यदि कोई व्यक्ति अनजान रूप से गांव में आ जाता है और किसी भी ग्रामीण या कृषक के घर पर पहुंच जाता है और वह भोजन की मांग करता है तो लोग बड़े प्रेम से ही उसे भोजन ग्रहण कर आते हैं तथा उसे सोने की व्यवस्था भी देते हैं ऐसी स्थिति में ग्रामीण समाज के लोगों में सहयोग की भावना पाई जाती है इसके अलावा वह जिस समाज में निवास करते हैं उस समाज के लोगों में भी आपसी सहयोग की भावना होती है उदाहरण के लिए आप लोग मान लीजिए कि ग्रामीण इलाके में अधिकतर छप्पर के होते हैं जो कि काफी भारी होते हैं और उसे बनाने के बाद उसे चलाना बहुत ही मुश्किल होता है जो ग्रामीण समाज में लोग बड़ी ही आसानी से उसे चढ़ा देते हैं क्योंकि किसी एक व्यक्ति के छप्पर को चढ़ाने के लिए लगभग 20 लोग एकत्र हो जाते हैं और वह बड़ी आसानी से उसे चढ़ा देते हैं उसके लिए उन्हें कोई भी मजदूरी नहीं दिया जाता है

5-स्थिर समाज (sthir samaj)

कृषक समाज एक स्थिर समाज होता है जो कि काफी अस्थाई होता है और ग्रामीण समाज में निवास करने वाले लोग अपना रहने का आवास दिन प्रतिदिन नहीं बदलते हैं वहीं पर नगरीय समाज में निवास करने वाले लोग दिन प्रतिदिन अपना आवाज बदल सकते हैं और कहीं भी रह सकते हैं लेकिन कृषक समाज में ऐसा बिल्कुल भी नहीं देखा जाता है कृषक समाज के अंतर्गत निवास करने वाले लोगों का जीवन काफी अस्थाई होता है और भागदौड़ का बिल्कुल भी नहीं होता है

6-पशुपालन (pasupalan)

कृषक समाज में अधिकतर देखा जाता है कि पशुपालन किया जाता है क्योंकि पशुपालन भी किसी से ही संबंधित होता है क्योंकि कृषि के द्वारा प्राप्त भूसा तथा पराली और घास को वह अपने पशुओं को खिलाते हैं और उनके द्वारा प्राप्त गोबर की खाद को अपने खेत में लगाते हैं जिससे पैदावार में आशातीत वृद्धि होती है इस प्रकार से कृषक समाज में पशुपालन का व्यवसाय भी काफी ज्यादा प्रभावी होता है और प्रत्येक घर में एक न एक पशु अवश्य पाए जाते हैं

7-भूमि का मालिक (bhoomi ka malik)

कृषक समाज में रहने वाला व्यक्ति भूमि का मालिक होता है अतः वह जिस भूमि पर कृषि करता है वह उसका मालिक होता है तथा वह जमीन उसके नाम पर होती है जो कि किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा वह छीना नहीं जा सकता है वहीं पर ग्रामीण समाज में यह भी देखा जाता है कि तमाम लोगों के पास जिनके पास भूमि नहीं होती है वह भूमि किराए पर लेते हैं जो कि जब तक का किराया व भूमि के मालिक को देते हैं तब तक के लिए वह भूमि उनकी हो जाती है और इस प्रकार से वह अपना जीवन यापन करते हैं

8-समरूप समाज (samroop samaj)

कृषक समाज एक रूप समाज होता है जिस में निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्तियों का रहन-सहन खानपान तथा पहनावा लगभग एक जैसे ही होता है उदाहरण के लिए आप लोग मांग सकते हैं कि यदि कोई व्यक्ति खेत में कार्य करता है तो उसके पहनावे अलग तरह के होते हैं जो कि फटे पुराने कपड़े होते हैं और कपड़े मेले को चले तथा मिट्टी लगी हुई होती है इस प्रकार के पहनावे खेत में कार्य करने वाले प्रत्येक व्यक्तियों का होता है तथा खान-पान भी लगभग समान होता है अतः कृषक समाज में यह अधिकतर देखा जाता है कि यह समाज समरूप होता है जबकि नगरीय समाज में निवास करने वाले लोग अलग-अलग स्तर के होते हैं जिसमें कुछ लोग उच्च स्तर के होते हैं तथा कुछ लोग निम्न स्तर के होते हैं उदाहरण के लिए आप लोग मान सकते हैं कि नगरीय समाज में जिन लोगों के पास फैक्ट्री हैं या दुकानें हैं या मॉल है तथा रेस्टोरेंट हैं वह लोग उच्च स्तर में निवास करते हैं अभी पर तमाम लोग ऐसे हैं जो कि मजदूरी करते हैं तथा रोड पर सोते हैं उन लोगों का स्तर काफी निम्न होता है इसलिए नगरीय समाज में एकरूपता बिल्कुल भी नहीं पाई जाती है वहीं पर ग्रामीण समाज में कृषक समाज में एकरूपता दिखाई देती है

9-गरीब समाज (poor socity)

कृषक समाज काफी गरीब होता है जो कि दिन-प्रतिदिन निर्धनता के गर्त में चला जाता है और एक दिन ऐसा आता है कि वह व्यक्ति काफी ज्यादा कर्ज में डूब जाता है तथा डिप्रेशन के वजह से वह आत्महत्या का शिकार हो जाता है इस प्रकार से कृषक समाज का भी गरीबी को जेलता है जैसा कि आप लोगों को मालूम होगा कि आधुनिक युग में कितनी ज्यादा महंगाई है और खाद तथा बीज बहुत ही महंगे होते जा रहे हैं उस की अपेक्षा कृषक के द्वारा उगाए गए अनाज की कीमत नहीं बढ़ पाती है जिसके वजह से वह व्यक्ति दिन प्रतिदिन गरीबी में ही जीवन व्यतीत करता रहता है और उनका जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं हो पाता है इस प्रकार से कृषक समाज की मुख्य विशेषता पाई जाती है कि कृषक समाज अधिक गरीब होता है

https://youtu.be/f8ZpPZEcl-Y

निष्कर्ष (conclusion)

संपूर्ण पोस्ट पढ़ने के पश्चात हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि गांव में निवास करने वाला वह व्यक्ति जो कि एक भूमि का मालिक होता है और उस भूमि पर वह अनाज होता है तथा उगाता है और उसे खाता है तथा बचे हुए अनाज को बेचकर अपना अभीष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करता है उसे कृषक समाज कहा जाता है कृषि ही उसका मुख्य व्यवसाय होता है इसके कुछ प्रमुख विशेषताएं भी यहां पर आपको पढ़ने को मिल चुकी हैं जो कि आप लोग देख सकते हैं कि कृषक समाज एक गरीब समाज होता है और इनका जीवन स्तर निम्न होता है कृषक समाज में निवास करने वाले लोगों में परंपरागत कृषि करने की आदत होती है और इस प्रकार से वह अधिक पैदावार नहीं कर पाते हैं और गरीब ही रहते हैं इत्यादि तमाम विशेषताएं यहां पर आपको पढ़ने को मिल चुकी हैं

shiva9532

My name is rahul tiwari and I am the owner and author of this blog. I am a full time blogger. I have studied B.Sc in computer science.

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