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पुरुषार्थ किसे कहते हैं, पुरुषार्थ का अर्थ, परिभाषा तथा प्रकार purusharth kise kahte hain? purusharth ka arth, paribhaha tatha prakar in hindi

पुरुषार्थ किसे कहते हैं यह प्रश्न काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रत्येक पुरुष को यह अर्थ जरूर जानना चाहिए कि पुरुष होने का क्या अर्थ होता है और यदि हमारा जीवन पुरुष जाति में हुआ है तो उसे हम किस प्रकार से धन्य बना सकते हैं और हमें किन-किन वस्तुओं की प्राप्ति होना अत्यंत आवश्यक है जिसके द्वारा हम पुरुष होने के अर्थ को प्राप्त कर सकते हैं ?अतः यहां पर आपको पुरुषार्थ के बारे में सभी जानकारी उपलब्ध कराई गई है जिसमें पुरुषार्थ के अर्थ तथा प्रकारों का उल्लेख किया गया है जिसके द्वारा आप पुरुषार्थ को पूरी तरह से समझ सकते हैं मानव जीवन का कुछ लक्ष्य होता है जो कि उसे जन्म लेने के पश्चात उसे अपना जीवन जीते हुए प्राप्त करना होता है अतः उस लक्ष्य की प्राप्ति यदि नहीं होती है तो वह व्यक्ति नरक में जाता है क्योंकि ईश्वर जब किसी को मानव जीवन प्रदान करता है तो उसे कुछ लक्ष्य प्रदान करता है कि तुम्हें इस संसार में जाकर इन लक्ष्यों की प्राप्ति करना है जिन्हें पुरुषार्थ कहा जाता है अतः यदि व्यक्ति उन पुरुषों की पूर्ति नहीं कर पाता है तो उसका मानव जीवन व्यर्थ चला जाता है और वह बार-बार 8400000 योनियों में भटकता रहता है तथा अपना जीवन नर्क बना लेता है ऐसी स्थिति में मानव जीवन एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा पुरुष होने के मुख्य लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है और उसके द्वारा जन्म मरण के बंधन से मुक्ति पा सकते हैं

पुरुषार्थ का अर्थ (purusharth ka arth)

पुरुषार्थ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें पहला शब्द है “पुरुष” और दूसरा शब्द “अर्थ” पुरुष होने के अर्थ को ही पुरुषार्थ कहा जाता है वह पुरुषार्थ कौन-कौन से हैं ?और पुरुषार्थ कितने प्रकार के होते हैं ?यहां पर संपूर्ण व्याख्या आपको मिलने वाली है पुरुषार्थ मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं जो कि धर्म ,अर्थ और काम तथा मोक्ष के रूप में हमें दिखाई देते हैं अतः इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हमें यह जीवन मिलता है और हम अपने जीवन में आकर अनेक प्रकार के अत्याचार और अनाचार करने लग जाते हैं जिसकी वजह से हमारा लक्ष्य हमें प्राप्त नहीं हो पाता है और पुनः में कीड़े मकोड़े तथा प्रति योनियों में भेज दिया जाता है और इस संसार में वह प्राणी भटकता रहता है

पुरुषार्थ के प्रकार (purusharth ke prakar)

पुरुषार्थ के बारे में समाज में अधिकतर चर्चा होती है जो कि तमाम लोग इसका साधारण अर्थ मानते हैं जिसे किसी का भला करना या किसी की मदद करना माना जाता है लेकिन समाजशास्त्र में इसका अलग अर्थ लगाया जाता है पुरुषार्थ मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं जो कि धर्म अर्थ काम तथा मोक्ष को पुरुषार्थ कहा जाता है अतः एक पुरुष को इन चारों पुरुषार्थ की पूर्ति करना एक मुख्य लक्ष्य होता है चारों पुरुषार्थ के बारे में नीचे में आपको संपूर्ण व्याख्या पढ़ने को मिल जाएगी

1-धर्म (dharm)

पुरुष होने का पहला लक्ष्य होता है धर्म जो कि व्यक्ति धर्म के द्वारा कार्य करता है और उसके द्वारा वह अनेक प्रकार के यज्ञ और पूजा पाठ करता है तथा अपने धर्म से संबंधित और अनुकूल काम करता है जिसके द्वारा समाज में उसे सम्मान की प्राप्ति होती है और समाज की व्यवस्था सुदृढ़ बनती है वहीं पर अधर्म व्यक्तियों को नरक की तरफ ले जाता है और समाज में भी उसे काफी गलत नजरों से देखा जाता है तथा समाज में उसे कोई सम्मान प्राप्त नहीं होता है अतः व्यक्ति को अपने धर्म के अनुसार तथा उसके अनुरूप कार्य करना चाहिए ताकि उसे पुरुष जीवन होने का पहला लक्ष्य की प्राप्ति हो सके

2-अर्थ (arth)

पुरुष होने का दूसरा लक्ष्य अर्थ होता है जो कि व्यक्ति को धन कमाना होता है क्योंकि जब कोई व्यक्ति गृहस्थाश्रम में प्रवेश करता है तो उसे धन की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि अपने बच्चों के पालन पोषण के लिए अपनी पत्नी का भरण पोषण करने के लिए उसे धन की अत्यंत आवश्यकता होती है और वह धन कमाते हुए अनेक प्रकार के यज्ञ हवन तथा पूजा पाठ करता है जिन्हें धर्म की संज्ञा में रखा जाता है और इस प्रकार से एक मानव जीवन में धन कमाना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है यहां पर हम आपको धन की महत्ता का वर्णन तुलसीदास जी के एक चौपाई के द्वारा करते हैं

तुलसी जग में दो बड़े एक पैसा इक राम

राम नाम से मुक्ति हो पैसा से सब काम

आधुनिक युग में आप लोग देख पा रहे होंगे कि या चौपाई पूरी तरह से सच साबित होती हुई दिखाई दे रही है और धन की कितनी ज्यादा आवश्यकता हो गई है और इसका महत्व दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहा है इसलिए एक पुरुष को धन अवश्य कमाना चाहिए और यह उसके जीवन का दूसरा पुरुषार्थ माना जाता है यदि मानव जीवन में धन नहीं है तो वह व्यक्ति एक सूखी धरती के समान माना जाता है जिसके बिना जीवन यापन हो पाना मुश्किल होता है अतः एक सामान्य जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति को धन की अत्यंत आवश्यकता होती है वहीं पर यदि कोई व्यक्ति महात्मा है यह साधु जीवन व्यतीत करता है तो उसे धन की कोई आवश्यकता नहीं होती

3-काम (kaam)

तीसरा पुरुषार्थ काम है जोकि भोग वासना को काम कहा जाता है हालांकि समाजशास्त्र में काम का अर्थ अन्य शब्दों में लगाया जाता है जिसका अर्थ कामना होता है अर्थात लालसा को काम की संज्ञा दी गई है अतः यह माना जा सकता है कि यदि उसकी इच्छा ही ना हो तो वह किसी भी वस्तु को प्राप्त ना कर सकता है उदाहरण के लिए आप लोग मान सकते हैं कि यदि किसी व्यक्ति की इच्छा धन कमाने की नहीं है तो वह धन की प्राप्ति नहीं कर सकता है इसलिए एक साधारण पुरुष के विचारों में इच्छाएं होना अत्यंत आवश्यक है जोकि व्यक्ति को कोई भी कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं तथा धन कमाने और धर्म करने के लिए तथा ईश्वर प्राप्ति के लिए भी कामना का होना या इच्छा का होना अत्यंत आवश्यक है यदि इच्छा ही नहीं होगी तो सभी पुरुषार्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती है इसलिए तीसरा पुरुषार्थ काम काफी महत्वपूर्ण बताया गया है

4-मोक्ष (moksh)

व्यक्ति को अपना जीवन व्यतीत करते हुए अंतिम समय में परम गति को प्राप्त करना होता है जिसे मुक्ति कहा जाता है अर्थात जो व्यक्ति अपना जीवन जीते हुए ईश्वर के चरणों को प्राप्त कर लेता है वह सदैव ईश्वर के चरणों में निवास करता है और वह व्यक्ति जन्म मरण के बंधन से मुक्ति पा जाता है जिसे मोक्ष कहा जाता है अतः उस परमपिता परमात्मा के चरणों को प्राप्त करने के लिए वह दिन प्रतिदिन भगवान का भजन करता है और वह व्यक्ति 50 वर्षों पश्चात मोक्ष की तलाश में निकल पड़ता है तथा भगवान के भक्ति में लीन रहता है और किसी के द्वारा दिए गए अनाज का भोजन करता है तथा अपने अंतिम क्षणों में भगवान की भक्ति को प्राप्त करता है पुरुष होने के अर्थ को प्राप्त करने के लिए चौथा पुरुषार्थ जिसे मुक्त कहा जाता है यह अत्यंत आवश्यक होता है यदि व्यक्ति अपना जीवन व्यतीत करते हुए ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाता है तो उसका जीवन व्यर्थ चला जाता है इसलिए उसे अपने मुक्ति के साधन को तलाशना चाहिए और धर्म युक्त काम करते हुए मोक्ष को प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है

निष्कर्ष (conclusion)

संपूर्ण पोस्ट पढ़ने के पश्चात यह निष्कर्ष निकलता है कि मानव जीवन एक मुख्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमें प्राप्त हुआ है अतः वह लक्ष्य धर्म अर्थ काम और मोक्ष के रूप में दिखाई देते हैं अतः इन चारो पुरुषों की प्राप्ति के लिए हमें हमेशा सदैव तत्पर रहना चाहिए और इनकी प्राप्ति करते हुए व्यक्ति समाज में भी अनेक प्रकार के सम्मान को प्राप्त करता है और एक सम्मानित जीवन व्यतीत करते हुए अंतिम क्षणों में ईश्वर की भक्ति को प्राप्त करता है तथा ईश्वर के चरणों में उसे स्थान प्राप्त होता है तथा वह व्यक्ति जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है ईश्वर ने मानव जीवन देने से पूर्व एक लक्ष्य प्राप्त करने के लिए संदेश दिया है कि मानव जीवन व्यतीत करते हुए मनुष्य को इन लक्ष्यों की प्राप्ति करना है यदि कोई व्यक्ति अधर्म अन्याय और अत्याचार करते हुए अपना जीवन व्यतीत करता है वह अंतिम क्षणों में नरक का भागी होता है और उसे फिर से 8400000 योनियों में भटकना पड़ता है तथा अनेक प्रकार की कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए वह दुखी होता है

shiva9532

My name is rahul tiwari and I am the owner and author of this blog. I am a full time blogger. I have studied B.Sc in computer science.

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