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समाज किसे कहते हैं? समाज का अर्थ, परिभाषा तथा विशेषताएं (samaj kise kahte hain? samaj ka arth, paribhasha, tatha visestayen)

समाज किसे कहते हैं? (socity)

मानव एक सामाजिक प्राणी है इसलिए समाज के बिना मानव का जीवन अधूरा है कोई भी व्यक्ति बिना समाज के जीवित नहीं रह सकता है इसलिए यह प्रश्न काफी महत्वपूर्ण साबित होने वाला है जिसमें आप लोगों को समाज से जुड़े हुए अनेक प्रश्न जैसे समाज (socity) का क्या अर्थ होता है ?तथा समाज की परिभाषा क्या है ?और समाज की क्या-क्या विशेषताएं होती हैं? इत्यादि अनेक प्रकार के प्रश्नों के उत्तर आपको यहां पर मिलने वाले हैं तमाम समाज शास्त्रियों के परिभाषा ओं को पढ़ने के पश्चात हम आप लोगों को समाज की पूरी परिभाषा अपने भाषा में तथा अपने अनुसार यहां पर आपको समझाने का प्रयत्न किया हूं जिसे यदि आप पढ़ना चाहते हैं तो आप बड़ी आसानी से इसे हमारे इस पोस्ट में पढ़ सकते हैं समाज सिर्फ मानव का ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी, जानवर और कीड़े -मकोड़ों का भी एक समाज होता है अतः अब आप समझ चुके होंगे कि समाज मानव जीवन के लिए तथा प्रत्येक जीवधारी व्यक्ति के लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है और इसके बारे में प्रत्येक व्यक्ति को जाना अत्यंत आवश्यक है

समाज का अर्थ (meaning of socity)

अधिकतर मामलों में तमाम लोग दो चार व्यक्तियों के संगठन को या समूह को समाज का नाम दे देते हैं लेकिन यह पूर्णतया सही नहीं है क्योंकि समाजशास्त्र में समाज का एक अलग ही अर्थ लगाया गया है जिसमें समाज को एक विस्तृत द्वारा दिया गया है और समाज को पूर्णतया समझना बहुत ही आवश्यक है दरअसल जब कुछ लोग एक साथ रहते हैं और निवास करते हैं तो वह एक दूसरे से किसी ना किसी रूप में संबंधित होते हैं अतः उन संबंधों के जाल को ही समाज कहा जाता है उदाहरण के लिए आप मान सकते हैं कि आप किसी गांव में रह रहे हो और आप एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और आपको मकान बनवाना है तो आपको सबसे पहले मकान बनाने वाले मिस्त्री की आवश्यकता होगी ऐसी स्थिति में आप स्वयं मकान नहीं बना सकते हैं इसके लिए आपको किसी मिस्त्री और लेबर की आवश्यकता होगी जो कि आपको पैसे देने होंगे और इस प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में एक दूसरे से संबंधित होता है अतः इन्हीं संबंधों के जाल को समाज कहा जाता है यदि व्यक्ति के बीच में कोई संबंध नहीं पाए जाते हैं तो उसे समाज का रूप नहीं दिया जा सकता है

समाज की परिभाषा (difnation of socity)

समाजशास्त्र की परिभाषा हम कुछ समाज शास्त्रियों के द्वारा दिए गए परिभाषा ओं को पढ़ने के पश्चात पूर्णतया स्पष्ट करेंगे जो कि आप लोग नीचे पढ़ेंगे|

मैकाइवर तथा पेज के अनुसार (maikaever tatha page ke anusar)– “समाज सामाजिक संबंधों का जाल है”

गिड्डिंग्स के अनुसार (gidings ke anusar)– “समाज व्यक्तियों का वह समूह है या संगठन है जिसके द्वारा प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे का सहयोग करने के लिए अपना अपना योगदान देते हैं”

रायट के अनुसार (raoyat ke anusar)-“समाज व्यक्तियों का समूह नहीं है बल्कि विभिन्न समूहों के बीच पाए जाने वाले संबंधों की एक व्यवस्था है जिसे समाज कहा जाता है”

उपर्युक्त परिभाषा को पढ़ने के पश्चात यह स्पष्ट होता है कि समाजशास्त्र में समाज का अर्थ व्यक्तियों के समूह से नहीं बल्कि उनके बीच में पाए जाने वाले संबंधों को समाज कहा जाता है यदि व्यक्ति एक दूसरे से संबंधित नहीं है तो ऐसे समाज का कोई अस्तित्व नहीं होता है और वह समाज बहुत जल्द ही विघटित हो जाते हैं

समाज की कुछ प्रमुख विशेषताएं (samaj ki kuchh pramukh visestayn)

समाज एक अमूर्त धारणा है जोकि एक संबंधों की जटिल व्यवस्था है जिसे ना तो देखा जा सकता है और ना स्पर्श किया जा सकता है इसलिए समाज में रहने वाले व्यक्तियों के बीच एक दूसरे के प्रति संबंध को ही समाज कहा जाता है

  1. समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की एक दूसरे पर पारस्परिक निर्भरता होती है जो कि सभी कार्य कोई अकेले व्यक्ति नहीं कर सकता है इसलिए समाज इसके लिए काफी ज्यादा आवश्यक माना जाता है उदाहरण के लिए आप लोग मान सकते हैं कि यदि आप कृषि करते हैं तो आपको खाद तथा बीज की आवश्यकता होती है जो कि आपको बाजार में किसी दुकान पर जाना होगा और पैसे देकर खरीदना होगा ऐसी स्थिति में आप लोग समझ सकते हैं कि एक दूसरे के प्रति लोग निर्भर होते हैं
  2. समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति जागरूक होते हैं और अपना अच्छा बुरा सब लोग समझते हैं तथा अपने जीवन यापन करने के लिए धन एकत्र करते हैं और भविष्य में किसी कठिनाई का सामना करने के लिए पूर्णतया सक्षम होते हैं और जागरूक होते हैं
  3. समाज में सहयोग तथा संघर्ष दोनों ही पाए जाते हैं जोकि समाज में रहते हुए व्यक्ति एक दूसरे के साथ व्यापार अपने सगे संबंधियों के शादी विवाह तथा खुशी में भी सहयोग देते हैं और वहीं पर यदि किसी व्यक्ति के ऊपर काफी तकलीफ पड़ जाता है ऐसी स्थिति में वह उनकी मदद भी करते हैं इस प्रकार से समाज में सहयोग तथा संघर्ष दोनों की भावना पाई जाती है
  4. समाज केवल मनुष्य तक सीमित नहीं है क्योंकि समाज पशु पक्षी जानवर कीड़े मकोड़े इत्यादि के भी होते हैं बिना समाज के एक जीवधारी का जीवन असंभव है
  5. समाज का क्षेत्र काफी विस्तृत होता है जो कि इसका कोई निश्चित क्षेत्र नहीं होता है कि समाज का दायरा कहां तक है अतः समाज का एक विस्तृत क्षेत्र है और असीमित क्षेत्र है क्योंकि समाज कहीं पर भी होना संभव है उदाहरण के लिए आप मान लीजिए कि जंगलों में पक्षियों का एक समाज होता है जो कि वह एक साथ दाना चुगने जाते हैं और एक साथ अपने अपने घोसले में जाते हैं
  6. समाज में समानता तथा असमानता दोनों ही बराबर मात्रा में पाई जाती है उदाहरण के लिए आप लोग मान सकते हैं कि मनुष्य के समाज में सभी मनुष्य के शारीरिक बनावट खानपान तथा पहनावा एक समाज में रहने वाले व्यक्तियों का एक तरह का होता है लेकिन वहीं पर लोगों के विचार में काफी ज्यादा भिन्नता होती है तथा लोगों के अलग-अलग उद्देश्य देखने को मिलते हैं इस प्रकार से समाज में समानता तथा असमानता दोनों हीरो पूर्णतया दिखाई देते हैं
  7. समाज एक जटिल व्यवस्था है जिसमें समय-समय पर परिवर्तन होता रहता है और समाज में रहने वाले व्यक्तियों की इच्छाएं तथा खानपान तथा पहनावे में भी परिवर्तन होता रहता है जो कि यह परिवर्तन होना संभव है लेकिन समाज का होना अत्यंत आवश्यक है इसलिए समाज एक जटिल व्यवस्था है अतः बिना समाज के कोई व्यक्ति नहीं रह सकता है

निष्कर्ष (conclusion)

संपूर्ण पोस्ट पढ़ने के पश्चात हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि समाज सामाजिक संबंधों का जाल है जिसमें रहने वाले व्यक्तियों के बीच में आपसी सहयोग तथा संघर्ष जुड़े हुए होते हैं और लोग एक दूसरे के ऊपर निर्भर होते हैं जो कि आप लोगों ने उदाहरण के माध्यम से भी देखा और पढ़ा है समाज की परिभाषा अनेक प्रकार के समाज शास्त्रियों के द्वारा दिए गए परिभाषाओं के द्वारा आप लोगों को स्पष्ट कराया गया है कि समाज मैं रहने वाले व्यक्ति किस प्रकार से एक दूसरे के प्रति संबंधित होते हैं और इसी संबंध को समाज कहा जाता है

shiva9532

My name is rahul tiwari and I am the owner and author of this blog. I am a full time blogger. I have studied B.Sc in computer science.

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