विवाह का अर्थ, प्रकार तथा उद्देश्य vivah ka arth, prakar tatha uddeshya

आज के इस पोस्ट में हम आप लोगों को विवाह का अर्थ (meaning of marriage) प्रकार तथा विवाह के उद्देश्य के बारे में यहां पर पूरी जानकारी उपलब्ध कराने वाले हैं यह एक समाज से जुड़ा हुआ प्रश्न है जो कि तमाम लोगों के मन में उठ रहा होगा कि आखिर विवाह का क्या अर्थ होता है ? और विवाह की क्या-क्या उद्देश्य होते हैं ? तथा इसकी क्या विशेषताएं होती है? इत्यादि सभी प्रश्नों के उत्तर यहां पर आपको मिलने वाले हैं विवाह वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत एक स्त्री और पुरुष का मिलन होता है जोकि इसके लिए एक उम्र सीमा निर्धारित होती है जो कि लगभग 18 साल से ऊपर और 25 साल तक विवाह की प्रक्रिया मानी जाती है और विवाह की प्रक्रिया के द्वारा स्त्री और पुरुष दोनों पति-पत्नी के बंधन में बंध जाते हैं और यौन संबंध बनाते हैं जिसके समाज पूरी तरह से अनुमति देता है और उससे प्राप्त संतान को समाज तथा कानून पूरी तरह से वैध मानता है इस प्रक्रिया को विवाह कहा जाता है अतः विवाह के प्रत्येक पहलू को समझने के लिए पोस्ट को पूरा पढ़ें हमने यहां पर बड़ी ही डिटेल्स में पूरी जानकारी यहां पर आपको उपलब्ध कराने की कोशिश की है

विवाह का अर्थ (meaning of marriage)
विवाह शब्द का मुख्य अर्थ यह होता है कि एक पुरुष अर्थात वर एक स्त्री अर्थात वधु को अपने घर लेकर आता है इस प्रक्रिया को ही विवाह कहा जाता है दरअसल सामाजिक जीवन में विवाह की प्रक्रिया काफी ज्यादा विस्तृत दिखाई देती है और इसका अलग शब्दों में अर्थ लगाया जाता है तमाम लोग विवाह को अलग-अलग रूप में परिभाषित करते हैं वहीं पर समाजशास्त्र के अनेक विद्वानों ने अलग-अलग रूप से विवाह को परिभाषित किया है जिसके द्वारा यह अर्थ निकलता है कि विवाह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा अपने धर्म तथा संस्कारों को मानते हुए तथा धर्म और संस्कारों के अनुरूप कार्य करते हुए एक पुरुष किसी स्त्री को पत्नी बनाकर अपने घर लाता है उसे विवाह कहा जाता है यह अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग रूप में दिखाई देता है लेकिन प्रत्येक धर्मों में सिर्फ वर वधू के मिलन को ही विवाह कहा जाता है हालांकि हिंदू धर्म में विवाह की प्रक्रिया कुछ अलग होती है वहीं पर मुस्लिम और ईसाई धर्म में भी विवाह की प्रक्रिया अलग-अलग रूप में आपको समाज में दिखाई देगी लेकिन विवाह के द्वारा लाई गई वधू को सरकार तथा समाज भी भर मानता है और उनसे प्राप्त संतान को वह अवैध मानता है और इस प्रकार से व्यक्ति का वंश लगातार चलता रहता है
विवाह की परिभाषा (definition of marriage)
अनेक प्रकार के समाज शास्त्रियों के द्वारा दिए गए परी भाषाओं को पढ़ने के पश्चात हम विवाह की परिभाषा को बहुत ही सटीक ढंग से स्पष्ट करेंगे
बोगार्ड के अनुसार (bogards ke anusaar)-“स्त्री और पुरुष के पारिवारिक जीवन में प्रवेश करना ही विवाह कहलाता है”
जॉनसन के अनुसार (jonsan ke anusaar)-“विवाह वह व्यवस्था है जिसके द्वारा एक ही स्त्री और पुरुष समाज में अपनी प्रतिष्ठा को बनाए रखते हुए यौन इच्छाओं की पूर्ति करता है तथा संतानोत्पत्ति करके उसकी समाजीकरण करता है और सामाजिक स्वीकृति प्रदान करता है”
रिवर्स के अनुसार (rivers ke anusaar)-“जिन साधनों के द्वारा व्यक्ति यौन संबंधों का नियमन करता है तथा एवं संबंधों के द्वारा संतान उत्पत्ति करता है जिसका समाज के द्वारा स्वीकृति प्रदान की जाती है उसे विवाह कहा जाता है”
सभी समाज शास्त्रियों के परिवारों को पढ़ने के पश्चात यह स्पष्ट होता है कि विवाह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति एक पारिवारिक जीवन में प्रवेश करता है और एक स्त्री और पुरुष का मिलन होता है और वह व्यक्ति अपने धर्म संस्कार दोहरी त्रिभुजों के अनुकूल कार्य करते हुए विवाह करता है तथा समाज के द्वारा स्वीकृति प्राप्त होने के बाद ही वह उस स्त्री को अपने घर लाता है तथा अपने यौन इच्छाओं की पूर्ति करता है तथा उससे प्राप्त संतान का पालन पोषण करता है जिसके द्वारा उसके वंश का संचालन होता है इस प्रक्रिया को विवाह कहा जाता है साधारण शब्दों में कहा जाए तो एक पुरुष जब किसी स्त्री को अपनी पत्नी बनाकर उसे अपने घर में लाता है तो उसे विवाह की संज्ञा दी जाती है जिसको समाज के द्वारा मान्यता प्राप्त होती है
हिंदू विवाह के प्रकार (types of hindu marriage)
हम यहां पर हिंदू विवाह के प्रकार के बारे में पूरी जानकारी वहां पर उपलब्ध कराने वाले हैं हिंदू धर्म में शास्त्रों के अनुसार विवाह मुख्यतः आठ प्रकार के पाए जाते हैं जो कि यहां पर आपको देखने को मिलेंगे इन विवाह में से मात्र दो विवाह को ही शास्त्र तथा समाज के द्वारा अनुमति प्राप्त होती है इसलिए इन 8 विवाह में से दो विवाह मुख्य माने जाते हैं जो कि ब्रह्म विवाह और देव विवाह हैं
1-ब्रह्म विवाह (bramh vivah)
वह विवाह जो वर पक्ष तथा कन्या पक्ष दोनों की अनुमति के द्वारा समान जाति तथा समान वर्ग में वर तथा कन्या दोनों की इच्छा अनुसार विवाह किया जाता है उसे ब्रह्म विवाह कहा जाता है जो कि आप आधुनिक युग में देख सकते हैं इस विवाह में पंडित के द्वारा वैदिक मंत्रों और रितिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए यह विवाह संपन्न किया जाता है यह विवाह हिंदू विवाह में सबसे अच्छा विवाह माना जाता है और समाज पूरी तरह से इस विवाह को अनुमति भी देता है
2-देव विवाह (dev vivah)
देव विवाह सामान्य विवाह माना जाता है जो कि मध्यम तरीके से इस विवाह को अनुमति प्राप्त होती है इस प्रकार के विवाह में वर तथा कन्या दोनों का इच्छाओं का भी ध्यान रखा जाता है और इसमें पहले से इस विवाह की तारीख निर्धारित नहीं की जाती है बल्कि किसी धार्मिक कार्य यज्ञ हवन इत्यादि के दक्षिणा स्वरूप या किसी वस्तु के मूल्य स्वरूप किसी व्यक्ति को जब उस स्त्री को सौंप दिया जाता है तो उसे देव विवाह कहा जाता है इस प्रकार के विवाह को भी समाज पूरी तरह से अनुमति देता है तथा या एक मध्यम विवाह माना जाता है यह विवाह अधिकतर रिसीव तथा ब्राह्मणों में हुआ करते थे
3-आर्श विवाह (aarsh vivah)
कन्या के इच्छाओं का ध्यान ना रखते हुए उसके जिम्मेदार लोगों को अर्थात उनके माता-पिता को उस कन्या का मूल्य देकर उससे विवाह कर लेना आर्श विवाह कहा जाता है यह विवाह सामाजिक रूप से गलत माना जाता लेकिन आधुनिक युग में इस प्रकार की काफी विवाह होते हुए दिखाई देते हैं
4-प्रजापत्य विवाह (prajapatya vivah)
इस प्रकार के विवाह में कन्याओं की इच्छाओं का कोई भी ध्यान नहीं रखा जाता है बल्कि कन्या के इच्छा के बिना भी उसके माता पिता जब किसी धनवान और सामाजिक तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति के साथ उसका विवाह उसके मर्जी के खिलाफ कर देते हैं तो उसे प्रजापत्य विवाह कहा जाता है यह विवाह सामाजिक रूप से तथा कानूनी रूप से गलत माना जाता है हालांकि आधुनिक युग में भी इस प्रकार की विवाह काफी प्रचलित है
5-गंधर्व विवाह (gandharve vivah)
यह विवाह प्राचीन काल में राजा महाराजाओं के द्वारा अधिकतर होता रहता था क्योंकि यदि राजाओं को कोई स्त्री पसंद आ जाती थी तो वह अपने पसंद के मुताबिक तथा उस स्त्री की इच्छाओं का भी ध्यान रखते हुए विवाह कर लेना गंधर्व विवाह कल आता था यह एक प्रेम विवाह है जो कि आधुनिक युग में लव मैरिज के नाम से भी जाना जाता है जो कि प्राचीन समय में गंधर्व विवाह के नाम से जाना जाता था
6-असुर विवाह (asur vivah)
यह विवाह कन्या की सहमति के बिना की जाती है जिसमें कन्या को आर्थिक रूप से खरीदा जाता है और इस प्रकार के विवाह को असुर विवाह कहा जाता है
7-राक्षस विवाह (rakshas vivah)
कन्या का जबरदस्ती अपहरण करके विवाह कर लेना राक्षस विवाह कहलाता है इस प्रकार के विवाह को समाज तथा कानून बिल्कुल भी मान्य नहीं करता है लेकिन प्राचीन समय में इस प्रकार के विवाह अधिकतर हुआ करते थे जो कि राजा महाराजाओं के द्वारा कोई स्त्री पसंद आ जाने पर उसका अपहरण कर लेते थे और उससे विवाह कर लेते थे
8-पैशाची विवाह (paisachi vivah)
कन्या को पागलपन की अवस्था में या मानसिक दुर्बलता या किसी अन्य मजबूरी के द्वारा उसका शारीरिक लाभ उठाकर शारीरिक संबंध बनाना तथा उससे विवाह कर लेना पैशाची विवाह कहलाता है या विवाह समाज में काफी गिरा हुआ विवाह माना जाता है जिसे सरकार और समाज बिल्कुल भी अनुमति नहीं देता है और इस पर कड़ा प्रतिबंध भी लगाया गया है
अन्तर्विवाह क्या है
वाह विवाह जिसके अंतर्गत स्त्री और पुरुष की एक जाति एक समुदाय तथा एक देश होता है उसे अंतर विवाह कहा जाता है उदाहरण के लिए जैसे आधुनिक युग में ब्राम्हण ब्राम्हण कुल तथा गोत्र में ही विवाह करता है और इस प्रकार से अन्य जातियों के लोग भी अपनी ही जाति में विवाह करते हैं उसे अंतर विवाह के नाम से जाना जाता है इस प्रकार के विवाह में जातियों में भी उपजातियां होती हैं जैसे कि ब्राह्मण में अनेक प्रकार के जाति पाए जाते हैं इस प्रकार से किसी स्त्री का विवाह करने के लिए अच्छे ब्राह्मण को चुना जाता है इस विवाह को भी अंतर विवाह ही कहा जाता है
बहुर्विवाह क्या है
बहुर्विवाह अंतर विवाह का विलोम शब्द है अतः इस प्रकार के विवाह में जब कन्या किसी और जाति की तथा वर किसी और जाति का होता है तो इस प्रकार के विवाह को बहुर्विवाह कहा जाता है
विवाह के उद्देश्य (purpose of marriage)
- विवाह का मुख्य उद्देश्य योन संतुष्टि होता है जिसके अंतर्गत विवाह करने के पश्चात पति पत्नी यौन संबंध बनाते हैं जिसकी अनुमति समाज के द्वारा प्राप्त होती है
- विवाह का दूसरा लक्ष्य वंश का संचालन करना होता है
- विवाह के द्वारा संतानोत्पत्ति की जाती है
- समाजीकरण की प्रक्रिया विवाह के द्वारा ही संचालित हो पाता है
- विवाह के द्वारा नातेदारी का विस्तार होता है
- पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त करने के लिए विवाह करना अत्यंत आवश्यक होता है
- 16 संस्कारों की पूर्ति के लिए विवाह आवश्यक है
- विवाह के द्वारा तीन पुरुषार्थ की पूर्ति की जाती है जो कि विवाह के पश्चात धर्म, अर्थ, काम की पूर्ति होती है क्योंकि जब व्यक्ति अकेले कोई पूजा पाठ करता है तो उसका पूजा अधूरा रहता है इसलिए उसके साथ पत्नी की आवश्यकता होती है धन कमाने के लिए पत्नी का सहयोग होना अत्यंत आवश्यक है तथा काम की पूर्ति पत्नी के द्वारा यौन संबंध के द्वारा होती है
- सामाजिक रीति-रिवाजों का नियमन करने के लिए विवाह अत्यंत आवश्यक है
- समाज की निरंतरता को बनाए रखने के लिए विवाह आवश्यक माना जाता है
विवाह की कुछ प्रमुख विशेषताएं (fetchers of marriage)
- विवाह के लिए दो विषम लिंग यो का होना अत्यंत आवश्यक होता है उदाहरण के लिए आप लोग मान सकते हैं कि दो पुरुष आपस में विवाह नहीं कर सकते उसी प्रकार 2 स्त्रियां आपस में विवाह नहीं कर सकते इसलिए विवाह करने के लिए एक स्त्री और पुरुष का होना अत्यंत आवश्यक है
- विवाह के द्वारा यौन इच्छाओं की पूर्ति होती है
- विवाह एक स्थाई संबंध होता है जो कि कोई व्यक्ति रोज नहीं बदल पाता है और वह जीवन में सिर्फ एक बार होता है हालांकि तमाम लोगों में यह देखा जाता है कि अधिकतर लोग जीवन में कई विवाह कर लेते हैं लेकिन यह सामाजिक दृष्टि से ठीक नहीं माना जाता है
- विवाह प्रत्येक देश तथा प्रत्येक समाज और संस्कृति में पाई जाती है
- विवाह के द्वारा बच्चों का पालन पोषण तथा समाजीकरण की प्रक्रिया होती है
- विवाह के द्वारा दो आत्माओं का मिलन होता है
- विवाह के बाद वर तथा वधू का एक नए जीवन का शुरुआत होता है
- पारिवारिक जीवन जीने के लिए विवाह अत्यंत आवश्यक है
निष्कर्ष (conclusion)
संपूर्ण पोस्ट पढ़ने के पश्चात या निष्कर्ष निकलता है कि विवाह एक प्रकार की वह व्यवस्था है जो कि एक परिवार बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक है और विवाह के अंतर्गत दो आत्माओं का मिलन होता है जिसे पति पत्नी के नाम से जाना जाता है जब एक पुरुष एक स्त्री को पत्नी बना कर घर लाता है तो उसे विवाह कहा जाता है विवाह की प्रक्रिया अनेक समाज में अनेक अनेक रूपों में दिखाई देती है जो कि हिंदू विवाह आपको आठ प्रकार के बताए गए हैं आप लोगों ने ऊपर की पोस्ट में पड़ा है उन सभी विवाह में सिर्फ ब्रह्म विवाह और देवविवाह ही महत्वपूर्ण माने जाते हैं अन्य सभी विवाह को सरकार तथा समाज अनुमति नहीं देती है लेकिन फिर भी आधुनिक समाज में इस प्रकार के विवाह होते रहते हैं विवाह के द्वारा योन संतुष्टि होती है तथा अपना बस चलाने के लिए संतानोत्पत्ति किया जाता है और बच्चों का लालन-पालन तथा समाजीकरण की प्रक्रिया विवाह के द्वारा ही संपन्न हो पाता है